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कविता

खुशफहमी

संजय कुंदन


यह कह कर किसी का मजाक मत उड़ाओ
कि वह खुशफहमी में जीता है
वह खुशफहमी में है इसीलिए तो जीता है

ईश्वर भी तो खुशफहमी का ही नाम है
अब किसी को लगता है तो लगने दो कि
ईश्वर उसे सड़क पार कराएगा
उसके लिए दवा ले कर आएगा

कोई खुशफहमी में ही आईना देखता है
एक चेहरे को याद करता है
और गुदगुदी महसूस करता है
धकेल देता है थोड़ी और दूर
अपना अकेलापन

कोई सड़क पार करता हुआ
समुद्र लाँघने के जोश से भर उठता है

खुशफहमी में ही तो शायर लिखता जाता है
कोई शख्स आग लिए बढ़ता जाता है
और ढूँढ़ लाता है जीने का नया सलीका।

 


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